Sunday, January 27, 2019

त्रिपुरा में 98 ईसाई क्यों बन गए हैं हिन्दू?: ग्राउंड रिपोर्ट

"हम बहुत तकलीफ में जीवन गुजार रहें है. चाय बागान बंद हो गया है. पति घर पर बेकार बैठे हुए हैं. मेरी बड़ी बेटी मानसिक रोगी है. बेटी के इलाज के लिए हमारे पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है. लेकिन लोग केवल हमारे धर्म के बारे में ही बात करने आते हैं."

28 साल की मंगरी मुंडा धीमी आवाज़ में मुझसे ये बातें कहते हुए कुछ देर के लिए खामोश हो जाती हैं. देश के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के उनाकोटि ज़िले के राची पाड़ा गांव में बीते रविवार को 22 आदिवासी परिवारों के 98 लोगों ने ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया.

राजधानी अगरतला से करीब 170 किलोमीटर नेशनल हाईवे 8 पर छोटे-बड़े तीन पहाड़ों को पार करने के बाद आता है कैलाशहर और वहां से महज 8 किला मीटर दूरी पर राची पाड़ा गांव है.

मिट्टी और जंगल के टीले पर बसे राची पाड़ा गांव में पहुंचने के लिए करीब दो किलोमीटर ऊपर की तरफ पैदल चलना पड़ता है. रास्ते में न कोई पक्की सड़क मिलती है, न कोई स्कूल और न ही कोई अस्पताल.

इस गांव में पीने का पानी और अन्य बुनियादी सुविधाएं भी दूर-दूर तक नजर नहीं आती. वैसे तो यहां की ख़बर कोई नहीं रखता लेकिन यहां बसे उरांव और मुंडा जनजाति के लोग जबसे हिंदू बने है मीडिया की सुर्ख़ियों में ज़रूर आ गए हैं.

मंगरी मुंडा का परिवार भी उन 22 परिवारों में से एक है जो बीते रविवार को ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू बने हैं. ईसाई से हिंदू बनी मंगरी इस नए बदलाव पर कहती हैं," हिंदू बनकर अच्छा लग रहा है. पहले मैं गांव के गिरजाघर में प्रार्थना करने जाया करती थी लेकिन अब वहां नहीं जाती. फ़िलहाल मैं अपनी बेटी को लेकर बहुत चिंतिंत हूं. उसका इलाज कैसे होगा, यही सोचकर परेशान हो जाती हूं."

राची पाड़ा गांव में जिन विवाहित महिलाओं ने हिंदू धर्म अपनाया है उनके किसी के माथे पर न कोई सिंदूर था और न ही किसी ने शाखा (चूड़ियां) पहन रखी थीं. इनमें से किसी का नाम भी नहीं बदला गया. ईसाई धर्म में रहते हुए जो उनके नाम थे वही नाम हिंदू बनने के बाद भी है.

धर्म बदला लेकिन नाम नहीं
इलाके में सक्रिय हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने रविवार को गांव के पास एक खुली जगह में 'धर्म परिवर्तन' कार्यक्रम का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में हिंदू जागरण मंच ने पुरोहित बुलाकर यज्ञ के माध्यम से इन आदिवासी लोगों का 'शुद्धिकरण' करवाया और इन्हें हिंदू बनाया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन हिंदू जागरण मंच के स्थानीय नेता आदिवासी लोगों के हिंदू बनने की इस घटना को 'घर वापसी' बता रहे हैं.

हिंदू जागरण मंच की त्रिपुरा इकाई के अध्यक्ष उत्तम डे ने इस पूरी घटना की जानकारी देते हुए बीबीसी से कहा, "वैसे तो हम राज्य में मुख्य तौर पर लव जिहाद के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं लेकिन पिछले कुछ समय से धर्मांतरण यहां एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. क्रिश्चियन मिशनरी खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी लोगों की गरीबी का फ़ायदा उठाकर उन्हें हिंदू से ईसाई बना रही हैं."

इन 22 आदिवासी परिवारों के फिर से हिंदू बनने के बारे में हिंदू जागरण मंच के नेता उत्तम डे कहते है, "जब हमें इन आदिवासी लोगों के बारे में पता चला तो हम उनके पास पहुंचे. इन लोगों ने हमें बताया कि ईसाई लोगों ने इनकी आर्थिक स्थिति का फ़ायदा उठाकर हिंदू से ईसाई बनाया था और अब ये सभी लोग स्वेच्छा से वापस हिंदू धर्म अपनाना चाहते है. हम इन्हें गायत्री कुंज यज्ञ के माध्यम से वापस हिंदू धर्म में लेकर आए हैं."

त्रिपुरा में धर्मांतरण को रोकने के बारे में उत्तम डे कहते है, "पूरे प्रदेश में हिंदू जागरण मंच के करीब 20 हज़ार सदस्य काम कर रहे हैं. हर ज़िले में हमारे लोग है, वो ऐसी घटनाओं पर नजर रख रहे हैं."

लेकिन राची पाड़ा गांव में ईसाई से हिंदू बने अधिकतर लोगों का कहना है कि बीते दिसंबर में क्रिसमस के समय गांव के कुछ आदिवासी लड़कों ने एक 'पवित्र बैल' की हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद सबकुछ उनके ख़िलाफ़ हो गया.

ईसाई से हिंदू बने राची पाड़ा गांव के जिडांग मुंडा बताते है, "दिसंबर महीने में गांव के कुछ लोगों ने एक बैल की हत्या कर दी थी. हमें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी.

लेकिन जब इस बात की ख़बर हिंदू संगठन के लोगों को मिली तो गांव में उन लोगों की पिटाई की गई जिन्होंने बैल को काटा था. हम सब लोग डर गए थे. इस घटना के बाद यहां डर का माहौल था. पुलिस भी आ गई थी."

इसी गांव के लोग बताते है कि हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों ने महादेव (भगवान शिव) के नाम पर इस ''पवित्र बैल'' को छोड़ा था, जो रांची पाड़ा के आसपास टिले पर रहता था.

'पवित्र बैल' की हत्या में शामिल आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हुए कैलाशहर पुलिस ने गांव के चार लोगों को गिरफ़्तार किया था जो फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं.

दिहाड़ी मजदूरी करने वाले जिडांग मुंडा गांव वालों के बीच थोड़े से पढ़े-लिखे है.

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