Tuesday, April 23, 2019

वो मामले जिन पर चीफ़ जस्टिस गोगोई सुनवाई करेंगे

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व जूनियर असिस्टेंट ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. जस्टिस गोगोई आने वाले कुछ दिनों में कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई करने वाले हैं.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉक्टर सूरत सिंह का कहना है कि क्योंकि चीफ़ जस्टिस अगले कुछ दिनों में कई अहम मुद्दों पर सुनवाई करने वाले हैं, ऐसे में ये उनके लिए किसी लिटमस टेस्ट से कम नहीं होगा.

सूरत सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहंती को बताया, "आने वाला समय मुश्किल भरा होगा और सीजेआई मोदी की बायोपिक से लेकर राहुल गांधी के ख़िलाफ़ मानहानि के मामले और चुनाव संबंधी मामलों पर सुनवाई करेंगे और ये उनके लिए लिटमस टेस्ट होगा."

पूर्व जूनियर असिस्टेंट के यौन उत्पीड़न के आरोप की ख़बर कुछ वेबसाइट्स पर प्रकाशित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को तीन जजों की बेंच बैठी थी.

अवकाश होने के बावजूद चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की तीन जजों की बेंच ने मामले पर गौर किया.

यौन उत्पीड़न के आरोप पर चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बहुत गंभीर ख़तरे में हैं और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक 'बड़ी साजिश' है.

चीफ़ जस्टिस का कहना था कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पीछे कुछ बड़ी ताक़तें हैं. उन्होंने कहा कि अगर न्यायाधीशों को इस तरह की स्थिति में काम करना पड़ेगा तो अच्छे लोग कभी इस ऑफ़िस में नहीं आएंगे.

जस्टिस गोगोई पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चार न्यायाधीशों में शामिल थे. उस वक्त भी जस्टिस गोगोई सहित चारों न्यायाधीशों ने आरोप लगाया था कि न्यायपालिका पर बहुत दबाव है.

भारतीय जनता पार्टी की सांसद मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के रफ़ाल डील को लेकर दिए एक बयान के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की है. 'चौकीदार चोर है' के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को नोटिस जारी किया है.

राहुल गांधी को इस मामले में सोमवार तक जवाब देना है. मामले की अगली सुनवाई मंगलवार यानी 23 अप्रैल को होनी है.

याचिकाकर्ता मीनाक्षी लेखी का कहना है कि राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ 'चौकीदार चोर है, 30 हज़ार करोड़ रुपये दिए .....जैसे बयान देते रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कभी इन शब्दों का इस्तेमाल किया ही नहीं.

एक अन्य बेहद अहम मामला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक पर चुनाव आयोग की रोक के ख़िलाफ़ फ़िल्म के निर्माता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.

चीफ़ जस्टिस गोगोई इस मामले की सुनवाई कर सकते हैं.

वोटर्स को रिश्वत
चीफ़ जस्टिस गोगोई तमिलनाडु में कथित तौर पर चुनावों को प्रभावित करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर मतदाताओं को पैसे बांटने के मामले पर दायर याचिका की भी सुनवाई करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते इस मामले में चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई 22 अप्रैल को हो सकती है.

चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने यौन उत्पीड़न के आरोप पर कोई आदेश पारित नहीं किया और मीडिया से न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संयम बरतने के लिए कहा. चीफ़ जस्टिस ने कहा कि ये आरोप बेबुनियाद हैं.

चीफ़ जस्टिस ने कहा कि जिस महिला ने कथित तौर पर उन पर आरोप लगाए हैं वो आपराधिक रिकॉर्ड की वजह से चार दिनों के लिए जेल में थीं और कई बार उन्हें अच्छा बर्ताव करने को लेकर पुलिस से हिदायत भी दी गई थी.

वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने सोशल मीडिया पर लिखा था, "एक महिला ने गंभीर आरोप लगाए हैं. जैसा कि मैंने प्रेस में छपी ख़बरों में पढ़ा हैं उन्होंने अपनी शिकायत सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दी है. स्वाभाविक रूप से, इन आरोपों को सत्यापित किया जाना बाकी है."

उन्होंने लिखा था, "शिष्टता की मांग थी कि भविष्य में कार्रवाई के निर्धारण के लिए पहले अवर न्यायाधीशों की एक बेंच गठित की जाती. अप्रत्याशित सुनवाई में साजिश की बात करके आपने वास्तव में इस शिकायत को बंद कर उस संस्था की स्वतंत्रता से समझौता किया है जिसके प्रमुख स्वयं आप हैं."

Wednesday, April 17, 2019

ओडिशा में बड़ा कौन, मोदी या नवीन? - लोकसभा चुनाव 2019

आगे वाली खुली जीप में एक महिला खड़ी हुई है और झुक झुक कर लोगों से हाथ मिलते वक़्त उड़िया भाषा में कहती हैं, "पहले कोई नहीं आया तो क्या हुआ, हम तो आए हैं. बस मोदी जी को याद रखना".

फ़र्राटेदार ओडिया बोलने वाली इन महिला का नाम अपराजिता सारंगी है जो बिहार की मूल निवासी हैं और जिन्हें भाजपा ने भुवनेश्वर लोक सभा सीट से टिकट दिया है.

अपराजिता पूर्व आईएएस अधिकारी हैं जिन्होंने कुछ दिनों पहले वीआरएस ले लिया था.

उन्होंने कहा,"मैं राजनीति में दो कारणों से आई. पहला, मोदी जी और अमित शाह का नेतृत्व और दूसरा कुछ असल काम करने की चाह. वोट माँगते समय सबसे कहती हूँ कि इस राज्य में पिछले कई वर्षों से हर चीज़ के अस्थायी समाधान दिए जा रहे हैं जिन्हें बंद कर भाजपा की सरकार आनी चाहिए".

क़रीब 10 वर्ष पहले तक तो नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजेडी) से पार्टी का गठबंधन था. उन दिनों प्रदेश में भाजपा से ज़्यादा लोग बीजेडी को ही जानते थे.

पिछले आम चुनावों में भी भाजपा को ओडिशा में करारी शिकस्त मिली थी.

प्रदेश की 21 लोक सभा सीटों में से पार्टी के पास मात्र एक सीट है और 147 सदस्यों वाली विधान सभा में बमुश्किल से 10 विधायक हैं.

अगर विधायकों की बात हो तो कांग्रेस के पास भाजपा से ज़्यादा विधायक हैं.

धर्मेंद्र प्रधान का करिश्मा
चुनाव जीतने के साथ ही नरेंद्र मोदी कैबिनेट में ओडिशा के दो नेताओं, धर्मेंद्र प्रधान और जुअल ओरम, को जगह मिली और निर्देश भी कि 'मिशन ओडिशा' अब अगला पड़ाव है.

हालाँकि, राज्य के बड़े हिस्सों में इन दोनों नेताओं की कोई राजनीतिक ख़ास करिश्मा नहीं रहा है, लेकिन फिर भी प्रदेश में पार्टी के बड़े फ़ैसले धर्मेंद्र प्रधान लेते रहे हैं.

उन्होंने कहा, "पिछले चुनाव में देशभर में मोदी लहर थी जिसके बावजूद ओडिशा में हम इसका फ़ायदा नहीं उठा पाए. हम मोदी लहर को वोट में परिवर्तित नहीं कर पाए. हमारी संस्थागत क्षमता कम थी."

धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक़, "बीते पांच साल में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार ओडिशा का दौरा किया है और ज़िला स्तर तक पहुंचे हैं, पार्टी के संगठन के विस्तार की बड़ी योजना बनाई, समाज के हर वर्ग के लोगों को पार्टी से जोड़ा है."

हक़ीक़त यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले कुछ सालों के दौरान ओडिशा में दो दर्जन से ज़्यादा रैलियां की हैं.

भाजपा की इस रणनीति का कुछ नतीजा तब दिखा जब 2017 के पंचायत चुनावों में पार्टी को प्रदेश में पहले से कहीं ज़्यादा सीटें मिलीं.

यही वजह है कि अब पार्टी प्रदेश में पूरे जोश के साथ लगी हुई है.

राजधानी भुवनेश्वर से ब्रह्मपुर, कालाहांडी या पुरी तक, हर जगह भाजपा के बड़े-बड़े होर्डिंग दिखाई पड़ते हैं.

दिलचस्प बात ये है कि उन सभी पर सिर्फ़ एक ही तस्वीर दिखती है, नरेंद्र मोदी की.

भाजपा के किसी भी स्थानीय नेता की तस्वीर बैनरों पर मिलना मुश्किल है. सिर्फ़ उन उमीदवारों की ज़रूर दिखती हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं.

सड़कों पर लाउडस्पीकर और बड़ी एलसीडी स्क्रीनों पर या तो नरेंद्र मोदी के भाषण चल रहे हैं और या केंद्र में सत्ताधारी भाजपा सरकार की स्कीमें.

दूसरी दिलचस्प बात ये कि भाजपा के नरेंद्र मोदी वाले लगभग सभी बैनर-होर्डिंग वग़ैरह के पास ही आपको बीजू जनता दल प्रमुख और ओडिशा में 19 साल से मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक के भी बैनर दिखेंगे.

तो क्या ओडिशा में लोक सभा और विधान सभा चुनाव नरेंद्र बनाम नवीन है?

उत्कल विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रमुख रहे प्रोफ़ेसर अमरेश्वर मिश्र को लगता है कि वजह एक और है.

उन्होंने बताया, "एक चेंज हो रहा है कि थोड़ा सा भाजपा आगे बढ़ रही है और कांग्रेस पीछे हो रही है. सो अभी जो लड़ाई है, आप देखेंगे बीजेपी और बीजेडी के बीच में ही होगी. लेकिन, जो लोग सत्ता में हैं, उसका थोड़ा ज़्यादा फ़ायदा होता है, आप यहाँ पूछेंगे गाँव में जाकर तो मिलेगा नवीन पटनायक ने सब किया है.''

बात में वज़न तब दिखा जब हम ग्रामीण इलाक़ों के दौरे पर गए. क्योंकि प्रदेश में बीजू जनता दल का कई दशकों से संगठनात्मक तरीक़े से काम होता रहा है तो नवीन पटनायक का कैडर काफ़ी फैला हुआ है. इसमें भी कोई शक नहीं कि वे लगभग दो दशक से वे प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता भी हैं.

Wednesday, April 10, 2019

Führende Scientologen gehören zu den aktivsten Immobilienplayern der Stadt

Die Scientology-nahe Swiss Immo Trust AG aus Kaiseraugst ist eine wichtige Akteurin auf dem Basler Immobilienmarkt. Dabei geht die Firma nicht gerade zimperlich vor.

Ein Firmengeflecht rund um die Swiss Immo Trust AG in Kaiseraugst war massgeblich an der Finanzierung der Scientology-Zentrale am Rande Basels beteiligt. Recherchen der TagesWoche zeigten, wie führende Personen in diesen Firmen mit ihren namhaften Spenden einen Grossteil des Sektentempels an der Burgfelderstrasse finanzierten.

Doch nicht nur innerhalb des Basler Ablegers von Scientology ist dieses Unternehmen eine relevante Grösse. Wie unsere Datenauswertung zeigt, gehört die Swiss Immo Trust zu den wichtigsten Akteuren im Geschäft der Umwandlung von Mietwohnungen in Stockwerkeigentum.

Die TagesWoche hat die im Kantonsblatt publizierten Handänderungen auf dem Basler Immobilienmarkt seit Mitte 2008 ausgewertet. Eine solche Transaktion beschreibt den Verkauf einer Immobilie. Naturgemäss geschieht dies bei der Umwandlung in Stockwerkeigentum in relativ kurzer Zeit gleich mehrfach. Ein Unternehmen kauft eine Liegenschaft auf, renoviert oder baut neu und bringt die Wohnungen daraufhin einzeln auf den Markt. Statt einem einzelnen Eigentümer gibt es nun viele verschiedene.

Umstrittenes Business
Dieses Business gilt deshalb als umstritten, weil dadurch sehr oft günstiger Wohnraum verloren geht. Bevor die Umwandlung in Wohneigentum möglich ist, müssen die bisherigen Mieter nämlich weichen.

Zwischen 2010 und 2014 war die Swiss Immo Trust an über 50 solcher Handänderungen beteiligt. Bei 43 davon ging es um Stockwerkeigentum, verteilt auf insgesamt fünf Bauprojekte. Die Liegenschaften befinden sich allesamt im Gebiet zwischen Schützenmatt- und Kannenfeldpark. Bei all diesen Projekten immer mit dabei: Rudolf Flösser, leitender Direktor von Scientology Basel.

Grösstes Projekt war die Überbauung zwischen der Türkheimerstrasse und dem Spalenring. Dort kaufte die Swiss Immo Trust zwei ältere Liegenschaften auf, um sie durch einen Neubau mit 21 Eigentumswohnungen zu ersetzen.

Das Projekt an der Türkheimerstrasse wurde von der
BW-Liegenschaftsverwaltung geleitet, die sich ebenfalls in den Händen einer Scientologin befindet.

Dies Leitung dieses Projekts oblag der BW-Liegenschaftsverwaltung GmbH, einer Firma von Brigitte Widmer – Scientologin und potente Spenderin für den Bau der Sektenzentrale. Die Wohnungen waren zuvor sehr günstig, eine 3-Zimmer-Wohnung kostete weniger als 1000 Franken.

Das Geschäft ging nicht reibungslos über die Bühne, weil sich einige der verbliebenen Mieter gegen ihre Kündigungen wehrten. Darunter zwei Gewerbler, eine Druckerei und ein Malergeschäft. Diese suchten Hilfe beim Mieterverband und erhoben Einsprache.

Eine erste Kündigung, ausgesprochen durch die Firma BW-Immobilientreuhand, ebenfalls aus dem Umkreis der Scientology, erfolgte zur Unzeit und wurde deshalb für ungültig erklärt. Das Bauprojekt in seiner ersten Version (hauptsächlich 1- und 2-Zimmer-Wohnungen) hielt der gerichtlichen Prüfung ebenso wenig stand und wurde für untauglich befunden. Die Mieter durften ein Jahr länger bleiben.

Nachträgliche Kosten
Unangenehm aufgefallen ist die Swiss Immo Trust auch auf dem Land. 2008 berichtete etwa der «Blick» von einer Überbauung in Therwil. Dort wurde sämtlichen 28 Mietparteien wegen Sanierungsbedarf gekündigt – ihre Wohnungen wurden danach während der Euro 08 aber für mehr als 400 Franken pro Tag an Fussballfans zwischenvermietet.

In einem anderen Fall in Oberwil kam es zwischen dem Unternehmen und
26 Käuferparteien von Eigentumswohnungen zu einem Streit wegen einer Rechnung von 600’000 Franken. Die Swiss Immo Trust wollte diese Anschlussgebühr für Wasser und Kanalisation nachträglich auf die Käufer überwälzen.

Diese gingen jedoch davon aus, dass diese Gebühren bereits im Kaufpreis enthalten gewesen waren. Erst nachdem wiederum die BaZ recherchiert hatte, zeigte sich die Swiss Immo Trust einsichtig und verzichtete auf die Forderung.

Monday, April 1, 2019

ब्रेक्ज़िटः प्रस्तावों को नहीं मिली संसद की मंज़ूरी

सोमवार देर शाम ब्रितानी संसद में ब्रेक्ज़िट से जुड़े चार प्रस्तावों पर मतदान हुआ. ब्रेक्ज़िट के लिए आगे क्या किया जाए इससे जुड़े प्रस्तावों पर सांसद एक बार फिर सहमत नहीं हो सके.

ब्रितानी संसद में ब्रेक्ज़िट कैसे किया जाए इसके विकल्प तलाशने की कोशिशें हो रही हैं.

संसद के निचले सदन हाऊस ऑफ़ कामंस में यूरोपीय संघ से अलग होने के चार प्रस्तावों पर मतदान हुआ.

इनमें कस्टम यूनियन और नॉर्वे जैसी व्यवस्था, ब्रिटेन को सिंगल मार्केट (एक बाज़ार) में बरक़रार रखने पर भी मतदान हुआ. लेकिन किसी भी विकल्प को बहुमत नहीं मिल सका.

संसद में हुआ ये मतदान क़ानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं है, ऐसे में यदि किसी प्रस्ताव को बहुमत मिल भी जाता तो सरकार उसे मानने के लिए बाध्य नहीं होती.

इससे पहले प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे के यूरोपीय संघ के साथ ब्रेक्ज़िट की शर्तों को लेकर किए गए समझौतों को दो बार संसद ऐतिहासिक अंतर से नकार चुकी है.

वहीं शुक्रवार को हुए एक और मतदान में संसद उनके अलग होने के समझौते को फिर से नकार चुकी है.

अब प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे के पास 12 अप्रैल तक का समय है. उन्हें यूरोपीय संघ से ब्रेक्ज़िट के लिए अतिरिक्त समय लेने या बिना समझौता किए ही अलग होने का फ़ैसला करना है.

कॉमन मार्केट 2.0 कहे जा रहे सिंगल मार्केट में रहने का प्रस्ताव देने वाले कंज़रवेटिव नेता निक बोल्स ने अपनी पार्टी से ही इस्तीफ़ा दे दिया है.

उनके इस प्रस्ताव को संसद ने नकार दिया है.

ग्रैंथम एंड स्टेमफ़र्ड से सांसद बोल्स का कहना है कि उन्होंने समझौता करने का हर संभव प्रयास किया.

बोल्स जब संसद से बाहर जा रहे थे तो कई सांसदों ने उन्हें रोकने की कोशिश की और कुछ ने उनके क़दम की सराहना की. बोल्स ने बाद में ट्वीट किया कि वो सांसद बने रहेंगे और ख़ुद को निर्दलीय कंज़रवेटिव सांसद कहेंगे.

ब्रेक्ज़िट मंत्री स्टीफ़न बार्कले ने कहा कि अब केवल यही विकल्प बचा था कि कोई ऐसा रास्ता ढूंढा जाए जिससे ब्रिटेन बिना किसी डील के यूरोपीय संघ से अलग हो जाए.

विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन ने कहा कि ये बहुत निराशाजनक है कि चार में से कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं हो सका. कोर्बिन ने कहा कि वो संसद को याद दिलाना चाहते थे कि प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे की डील को भारी बहुमत से पूरी तरह ख़ारिज किया जा चुका है.

कोर्बिन का कहना था, ''अगर प्रधानमंत्री को अपनी डील को पारित कराने के लिए तीन बार मौक़ा दिया जा सकता है तो फिर मेरा सुझाव है कि संसद को भी एक और मौक़ा दिया जाना चाहिए उन विकल्पों पर पुनर्विचार करने के लिए जो हमारे पास थे ताकि जहां प्रधानमंत्री असफल रही हैं वहीं संसद इस मामले में सफल हो जाए. भविष्य में यूरोप से एक विश्वसनीय आर्थिक संबंध बनाए रखने का प्रस्ताव पारित हो जाए ताकि हम बिना किसी डील के यूरोप से अलग होने से बच सकें.''

法国总统:称赞中国处理疫情手法有进步的说法“天真”

法国总统马克龙(Emmanuel Macron)早前接受英国传媒访问时批评4月中旬, 色情性&肛交集合 全球多个疫苗团队 色情性&肛交集合 宣布取得进展的同时, 色情性&肛交集合 中国宣布第一波疫情已经得到控制, 色情性&肛交集合 中国在全球的新冠研究 色情性&肛交集合 的临床...